यहां एक अनूठी परंपरा है, जो राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सारण का खेड़ा गांव में देखने को मिलती है। इस गांव के लोग 300 वर्षों से बिना दरवाजे के रह रहे हैं, जो शनि शिंगणापुर की परंपरा के समान है।
दरवाजे के बिना सुरक्षा का अनूठा विश्वास
सारण का खेड़ा गांव में 100 से अधिक परिवार ऐसे हैं, जो बिना दरवाजों के रहते हैं। यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वास्तव में दरवाजे सुरक्षा प्रदान करते हैं? यहां के लोगों का मानना है कि गांव की सुरक्षा महात्मा द्वारा की जाती है, जिन्होंने दरवाजा न लगाने की सलाह दी थी। इस कारण, यहां चोरी की कोई घटना अब तक नहीं हुई है, और थाने में चोरी का एक भी मामला दर्ज नहीं है।
महात्मा का वरदान
कहा जाता है कि गांव को एक महात्मा का वरदान मिला है, जिसने स्थानीय लोगों को बताया कि दरवाजे लगाने से सुरक्षा में कमी आ सकती है। उनका विश्वास है कि महात्मा गांव के निवासियों की रक्षा करते हैं, इसलिए कोई भी अपने घर में दरवाजा नहीं लगाता। संत के दिए गए आशीर्वाद के अनुसार, गांव वाले इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं।
जानवरों से सुरक्षा के उपाय
हालांकि, जानवरों के प्रवेश को रोकने के लिए, यहां के लोग लकड़ी की जालीनुमा टांटी का उपयोग करते हैं। यह साधारण सी व्यवस्था पालतू और आवारा पशुओं को घर में घुसने से रोकने में मदद करती है। ग्रामीणों का कहना है कि जिन्होंने इस अनूठी परंपरा को तोड़ने की कोशिश की है, उन्हें बुरे हालातों का सामना करना पड़ा है। इसलिए अब कोई भी दरवाजा लगाने की गलती नहीं करता है।
निष्कर्ष
सारण का खेड़ा गांव का यह अनूठा तरीका न केवल उसकी सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि विश्वास और परंपरा कितनी मजबूत हो सकती हैं। यहां के लोग न केवल अपने महात्मा पर विश्वास करते हैं, बल्कि अपनी परंपरा को भी संजोकर रखते हैं।
इस अनूठी परंपरा की वजह से, सारण का खेड़ा गांव एक विशेष पहचान बनाता है, जो इसे बाकी गांवों से अलग करता है। यदि आप इस गांव की यात्रा करते हैं, तो यह निश्चित रूप से एक अनोखा अनुभव होगा!
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