हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को संविधान के खिलाफ और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विरुद्ध बताया। इसके परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि मदरसा में पढ़ने वाले छात्रों को नियमित स्कूलों में दाखिला दिया जाए। इस फैसले ने 17 लाख से अधिक छात्रों को चिंता में डाल दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाते हुए एक नई दिशा दी है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: मदरसा कानून को वैध ठहराया
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल को सीजेआई की अध्यक्षता में एक पीठ के जरिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004’ की संवैधानिक वैधता बरकरार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता।
अदालत की व्याख्या:
- उच्च न्यायालय का यह तर्क कि यह कानून मूल ढांचे का उल्लंघन करता है, सही नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी मदरसा अधिनियम केवल इस हद तक असंवैधानिक है कि यह फाजिल और कामिल के तहत उच्च शिक्षा की डिग्री प्रदान करता है, जो यूजीसी अधिनियम के विपरीत है।
- इसके साथ ही, यह भी बताया गया कि मदरसों में शिक्षा के स्तर को मानकीकरण करने के लिए इस अधिनियम की विधायी योजना है।
मदरसों के लिए राहत का सबब
यह फैसला उत्तर प्रदेश के मदरसों के अध्यापकों और विद्यार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत लेकर आया है। उच्च न्यायालय ने पहले इन मदरसों को बंद करने और वहां पढ़ रहे विद्यार्थियों को अन्य विद्यालयों में दाखिला देने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
क्या है मामला? सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय लिया कि उत्तर प्रदेश मदरसा कानून पूरी तरह से वैध है।
मदरसा शिक्षा के भविष्य पर प्रकाश
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल मदरसों में शिक्षा को सुरक्षित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि धार्मिक संस्थानों में शिक्षा का स्तर उच्चतम मानकों पर हो।
किसने क्या कहा? लखनऊ ईदगाह के इमाम और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी ने इस फैसले पर अपनी खुशी व्यक्त की। उन्होंने कहा, “इस फैसले से मदरसों से जुड़े लोगों में खुशी की लहर है। यूपी मदरसा अधिनियम का मसौदा यूपी सरकार ने ही बनाया था। सरकार द्वारा बनाया गया अधिनियम असंवैधानिक कैसे हो सकता है?”
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल मदरसों में शिक्षा के भविष्य को सुरक्षित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत एक मजबूत आधार पर खड़ा है। मदरसा शिक्षा को आधुनिकता से जोड़ना, एक ऐसा कदम है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए फायदेमंद साबित होगा।
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