आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जो माता लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक है। यह दिन खासतौर पर इसीलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी का प्राकट्य समुद्र मंथन से हुआ था। शरद पूर्णिमा को देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिससे भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी का धरती पर आगमन
शरद पूर्णिमा की रात को चाँद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और माना जाता है कि इस रात देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं। यह समय माता लक्ष्मी के स्वागत का होता है। लोग अपने घरों को सजाते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और रातभर जागकर देवी की आराधना करते हैं। इस विशेष रात को जागने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
माता लक्ष्मी के स्वागत के उपाय
- दीप जलाना: शरद पूर्णिमा की रात को दीप जलाने का विशेष महत्व है। दरवाजे पर घी का दीपक जलाकर माता लक्ष्मी का स्वागत करने का अर्थ है कि आप उन्हें अपने घर में आमंत्रित कर रहे हैं। यह न केवल देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करता है, बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है।
- स्नान और साफ-सफाई: प्रात: जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें तुलसी की पत्तियाँ डालकर इस पानी को घर के कोनों और मुख्य द्वार पर छिड़कें। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और मां लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त करता है।
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शरद पूर्णिमा पर पूजा विधि
- पवित्र स्थान का चयन: पूजा के लिए एक साफ-सुथरा और पवित्र स्थान चुनें।
- माता लक्ष्मी की प्रतिमा: देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
- आरती और भोग: लक्ष्मी माता की आरती करें और उन्हें मिठाई एवं फूलों का भोग अर्पित करें।
- जागरण: रातभर जागकर माता लक्ष्मी की भक्ति करें।
निष्कर्ष
शरद पूर्णिमा माता लक्ष्मी की कृपा पाने का विशेष अवसर है। इस दिन की गई पूजा से न केवल धन-धान्य की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का भी संचार होता है। माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए श्रद्धा और विश्वास से की गई पूजा हर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती है।
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