केंद्रीय बैंक का दृष्टिकोण: रेपो रेट और मुद्रास्फीति
RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अगस्त में स्पष्ट कर दिया था कि बैंक की प्राथमिकता घरेलू अर्थव्यवस्था की स्थिति के आधार पर ब्याज दरों को समायोजित करना है। मौजूदा रेपो रेट 6.5% पर स्थिर रखा गया है, जो लगातार 10वीं बार ऐसा हुआ है। यह निर्णय वैश्विक वित्तीय परिवर्तनों के बावजूद भारत के मौलिक आर्थिक हालातों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
वैश्विक प्रभाव और अमेरिका का उदाहरण
हाल ही में अमेरिका के केंद्रीय बैंक, Federal Reserve ने अपनी ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की थी। इससे यह उम्मीद की जा रही थी कि भारत समेत अन्य देशों में भी ब्याज दरों में कमी की संभावना बनेगी। हालांकि, RBI ने यह साफ कर दिया कि भारत की ब्याज दरों पर कोई भी फैसला घरेलू आर्थिक स्थितियों के आधार पर ही लिया जाएगा।
मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और भविष्य की संभावनाएँ
RBI का फोकस पिछले कुछ महीनों से खुदरा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर है, और इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। मुद्रास्फीति दर धीरे-धीरे केंद्रीय बैंक के 4% के लक्ष्य के करीब आ रही है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सितंबर और अक्टूबर के महीनों में मुद्रास्फीति नियंत्रित रहती है, तो RBI दिसंबर में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है।
रेपो रेट में बदलाव: क्या दिसंबर में हो सकता है कटौती?
एक्सपर्ट्स के अनुसार, यदि मुद्रास्फीति को काबू में रखा जाता है तो RBI दिसंबर में रेपो रेट में कटौती का निर्णय ले सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बैंक धीरे-धीरे ब्याज दरों में कमी करेगा, एक बार में 50 बेसिस प्वाइंट्स की जगह दो चरणों में 25-25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की संभावना है।
अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर केंद्रीय बैंक की नजर
आरबीआई का फोकस केवल मुद्रास्फीति पर ही नहीं है, बल्कि आर्थिक विकास दर को बनाए रखना भी उसकी प्राथमिकता में शामिल है। वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर अपेक्षित से कम रही है, जिससे यह स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता बनाए रखने की जरूरत है। हालांकि, कोविड महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है और इसे दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक माना गया है।
आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी का भविष्य
आरबीआई हर दो महीने में अपनी मॉनेटरी पॉलिसी की समीक्षा करता है, और अगली समीक्षा दिसंबर में होने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि मुद्रास्फीति के आंकड़े और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ इस फैसले में बड़ी भूमिका निभाएंगी।
निष्कर्ष
RBI का रेपो रेट में बदलाव न करना घरेलू आर्थिक परिस्थितियों को स्थिर बनाए रखने की उसकी रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, भविष्य में रेपो रेट में कटौती की संभावना अभी भी बरकरार है, विशेष रूप से यदि मुद्रास्फीति नियंत्रित रहती है। निवेशकों और उपभोक्ताओं के लिए यह समय इंतजार और देखभाल का है, क्योंकि दिसंबर में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
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