हाल ही में, जापान के मियाज़ाकी एयरपोर्ट पर एक 80 साल पुराना बम फटने से पूरे देश में खलबली मच गई। इस धमाके की गूंज टोक्यो से लेकर टेक्सास तक सुनाई दी, जिससे सभी की धड़कनें बढ़ गईं। लेकिन आखिर इस घटना की पूरी कहानी क्या है? आइए जानते हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध का विस्फोटक अतीत
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा निर्मित इस बम का फटना एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। यह वही समय था जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराकर जापान को तबाह करने का निर्णय लिया था। हालिया बम विस्फोट ने पुराने घावों को फिर से ताजा कर दिया।
बम का फटना और उसके परिणाम
मियाज़ाकी एयरपोर्ट पर बम का फटना एक भयानक घटना थी, लेकिन शुक्र है कि उस समय वहां कोई उड़ान मौजूद नहीं थी। इस घटना के चलते एयरपोर्ट पर 80 से अधिक उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। जापानी अधिकारियों ने बताया कि जब बम फटा, तब वह केवल टैक्सीवे पर गिरा, जिससे एक गहरा गड्ढा बन गया। राहत की बात यह रही कि किसी प्रकार की जनहानि नहीं हुई।
वैज्ञानिकों की चूक
CNN में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मियाज़ाकी एयरपोर्ट का निर्माण 1943 में एक नौसेना उड़ान प्रशिक्षण क्षेत्र के रूप में हुआ था। यहां से कई पायलटों ने युद्ध में भाग लिया था। जापान में कई ऐसे स्थान हैं जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गिराए गए जिंदा बम अभी भी दबे हुए हैं। अब पूरी जापानी टीम इस बात को सुनिश्चित करने में जुटी है कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
यह सवाल उठता है कि वैज्ञानिक इस बम को पहले क्यों नहीं पहचान पाए? यदि उन्हें इसके बारे में जानकारी थी, तो इसे सुरक्षित रूप से निष्क्रिय करने में असफलता क्यों रही?
अमेरिका तक पहुंची धुआं और दहशत
इस घटना की गूंज भले ही केवल एयरपोर्ट के आसपास तक सीमित रही हो, लेकिन इसके धुएं और प्रभाव की खबरें अमेरिका तक पहुंच गईं। यह दर्शाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गिराए गए बम आज भी विभिन्न देशों में मौजूद हैं। भारत के पश्चिम बंगाल और असम में भी ऐसे बम मिले हैं।
निष्कर्ष
जापान में हुई इस भयानक घटना ने हमें यह सिखाया है कि अतीत की छायाएँ कभी-कभी फिर से प्रकट हो सकती हैं। जापानी वैज्ञानिकों को अब इस घटना से सीख लेने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
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