डांडिया रास का त्योहार दुर्गा पूजा के साथ ही हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। यह नृत्य गुजरात की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन अब यह पूरे देश में लोकप्रियता हासिल कर चुका है। परंतु, क्या आप जानते हैं कि डांडिया की शुरुआत कहां से हुई और यह देवी शक्ति के साथ कैसे जुड़ा? यह लेख आपको डांडिया की पौराणिक जड़ों और इसके महत्व के बारे में गहराई से बताएगा।
डांडिया का पौराणिक इतिहास
डांडिया रास की परंपरा पौराणिक काल से जुड़ी हुई है। इसकी शुरुआत द्वापर युग में मानी जाती है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों के बीच का नृत्य एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भागवत पुराण में इस नृत्य का उल्लेख मिलता है, जहां श्रीकृष्ण गोपियों के साथ आनंदित होकर नृत्य करते थे। इसके अलावा, स्कंद पुराण में भी नवरात्र के दौरान नृत्य को आनंद का उत्सव माना गया है।
हरिवंश पुराण में भी दो प्रमुख नृत्यों का जिक्र है, जिन्हें दंड रसक और ताल रसक कहा गया है। यह नृत्य गुजरात में यादवों द्वारा किया जाता था, जो श्रीकृष्ण के वंशज माने जाते हैं। इन नृत्यों के माध्यम से देवी की आराधना का यह तरीका सदियों से चला आ रहा है।
डांडिया और गरबा: एक सांस्कृतिक यात्रा
आधुनिक युग में डांडिया और गरबा की परंपरा मुख्य रूप से गुजरात से फैली है। इन नृत्यों में कुछ भिन्नताएं हैं। डांडिया रास में देवी के प्रति ध्यान केंद्रित किया जाता है, जबकि गरबा नृत्य में तालियों का उपयोग किया जाता है। डांडिया और गरबा नृत्य के दौरान देवी की पूजा की जाती है, और देवी मां की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित किया जाता है।
हालांकि, आजकल इस परंपरा में बदलाव आया है, जहां दीप की जगह बिजली की रोशनी का उपयोग किया जाता है। इसके बावजूद, नृत्य की भावनात्मकता और श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई है।
सकारात्मक ऊर्जा का संचार
डांडिया रास के दौरान एक-दूसरे के डांडिया को टकराने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। यह नृत्य न केवल आनंद और उल्लास का अनुभव कराता है, बल्कि जीवन की नकारात्मकता को भी समाप्त करता है। कवि दयाराम और वल्लभ भट ने देवी रानी को प्रसन्न करने के लिए गीतों की रचना की, जिन्हें गरबा कहा जाता है।
पौराणिक कथा: देवी की आराधना का महत्व
एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षसों के राजा महिषासुर को वरदान मिला था कि कोई पुरुष उसे नहीं मार सकेगा। इसके परिणामस्वरूप, उसने तीनों लोकों में तबाही मचाना शुरू कर दिया। देवताओं ने इस समस्या का समाधान निकालते हुए ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा के रूप में अवतरित करने का निर्णय लिया। देवी ने महिषासुर के साथ नौ दिनों तक युद्ध किया और अंत में उसे पराजित किया।
इस विजय के बाद, देवी दुर्गा को धन्यवाद देने के लिए नृत्य का सहारा लिया गया। इस तरह, नृत्य के माध्यम से माता रानी की आराधना का यह तरीका आज भी प्रचलित है।
निष्कर्ष
डांडिया का इतिहास न केवल एक नृत्य की परंपरा है, बल्कि यह देवी शक्ति के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह त्योहार हमें एकजुटता, सकारात्मकता और आनंद का अनुभव कराता है। इसलिए, इस नवरात्रि पर डांडिया रास में भाग लें और देवी दुर्गा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करें।
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