हरियाणा में भाजपा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें जाट समुदाय की नाराजगी, किसानों के विरोध और अग्निवीर योजना से नाखुश सेना के उम्मीदवार शामिल थे। इसके अलावा, कांग्रेस के मजबूत प्रचार और टिकट वितरण से नाखुश पार्टी के भीतर विद्रोहियों ने भी भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। इसके बावजूद, भाजपा ने हरियाणा में अपनी ऐतिहासिक तीसरी जीत दर्ज की, जिसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण और कुशल रणनीतियां थीं।
धर्मेंद्र प्रधान: पर्दे के पीछे की रणनीति
भाजपा की इस जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी सहयोगी धर्मेंद्र प्रधान की रणनीतिक कौशल का बड़ा योगदान रहा। धर्मेंद्र प्रधान ने हरियाणा में चुनावी प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालते हुए पर्दे के पीछे रहकर विरोधियों को चित करने के लिए कई अहम कदम उठाए। इससे पहले, वह अपने गृह राज्य ओडिशा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह की रणनीतियों से सफलता हासिल कर चुके हैं।
चुनौतीपूर्ण स्थिति में मोर्चा संभाला
हरियाणा में भाजपा सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी, और पार्टी के भीतर विद्रोह भी चरम पर था। पार्टी को जाट और किसानों की नाराजगी, अग्निवीर योजना से नाखुश सेना के उम्मीदवारों, कांग्रेस के जोरदार प्रचार, और टिकट वितरण से असंतुष्ट कार्यकर्ताओं से जूझना पड़ा। इन सब के बीच, धर्मेंद्र प्रधान ने जिम्मेदारी संभाली और पार्टी को मुश्किल हालात से बाहर निकाला।
जमीनी स्तर पर काम: कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया
धर्मेंद्र प्रधान की सबसे बड़ी ताकत उनकी जमीनी स्तर पर काम करने की क्षमता थी। उन्होंने हरियाणा में एक महीने से ज्यादा समय तक डेरा डाले रखा और रोहतक, कुरुक्षेत्र, और पंचकूला में शिविर लगाए। इस दौरान, उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की, उनकी समस्याएं सुनीं और उन्हें केंद्रीय नेतृत्व तक पहुँचाया। प्रधान ने कमजोर बूथों की पहचान की, नाराज कार्यकर्ताओं को शांत किया, और अन्य दलों के मजबूत कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल करने में सफलता पाई।
बागियों से निपटने की कुशलता
टिकट वितरण के बाद पार्टी में विद्रोहियों की समस्या खड़ी हो गई थी। भाजपा को 25 से अधिक बागियों का सामना करना पड़ा, जो चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे। धर्मेंद्र प्रधान और उनकी टीम की कुशल रणनीति के चलते अधिकांश विद्रोही नामांकन वापस लेने के लिए राजी हो गए, और अंततः केवल तीन बागी ही बचे, जिनसे पार्टी को निपटना पड़ा।
भाजपा की तीसरी जीत: मजबूत रणनीति का नतीजा
धर्मेंद्र प्रधान की योजनाबद्ध रणनीति और जमीनी काम का नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल की। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 48 पर भाजपा ने जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस को 37 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
निष्कर्ष और भविष्य की दिशा
धर्मेंद्र प्रधान की कुशल रणनीति और जमीनी काम ने हरियाणा में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उनके इस अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर सही रणनीति और समर्पण से कैसे चुनावी लड़ाई जीती जा सकती है। हरियाणा की यह जीत भाजपा के भविष्य के लिए भी एक मजबूत संदेश है, जो दिखाता है कि संगठनात्मक शक्ति और कुशल रणनीतिकारों का होना कितना महत्वपूर्ण है।
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