ब्रिक्स (BRICS ) (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) देश नई मुद्रा बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं, और इसके कई प्रमुख कारण हैं। हाल के वर्षों में वैश्विक वित्तीय चुनौतियों और अमेरिकी नीतियों से उपजी आर्थिक अस्थिरता ने ब्रिक्स देशों को इस दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है। अमेरिकी डॉलर का वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर प्रभुत्व है, और इस प्रभुत्व से होने वाले नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिए ब्रिक्स देश एक नई आरक्षित मुद्रा की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व और इसके खिलाफ अभियान
वर्तमान में, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर का लगभग 90% हिस्सा है, विशेषकर तेल व्यापार के मामले में, जहां लगभग सभी लेनदेन डॉलर में होते हैं। इस स्थिति के चलते, वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर अमेरिका का प्रभाव अत्यधिक बढ़ गया है। इसके साथ ही, अमेरिका की आक्रामक विदेश नीति और चीन के साथ चल रहे व्यापार युद्ध ने भी ब्रिक्स देशों को अमेरिकी वित्तीय प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए एकजुट किया है।
नई मुद्रा का उद्देश्य
ब्रिक्स देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को अमेरिकी डॉलर और यूरो पर निर्भरता से मुक्त करना चाहते हैं। नई मुद्रा से इन देशों को अपने व्यापार और आर्थिक हितों को बेहतर ढंग से साधने का अवसर मिलेगा। अगर ब्रिक्स मुद्रा की स्थापना होती है, तो सदस्य देश आपसी व्यापार में अमेरिकी डॉलर के बजाय इस नई मुद्रा का उपयोग करेंगे, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ेगी और अमेरिकी मुद्रा पर निर्भरता कम होगी।
रूस के शिखर सम्मेलन में चर्चा
रूस के कज़ान में 22 से 24 अक्टूबर 2024 को होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा होने की संभावना है। अगर शिखर सम्मेलन में इस पर सहमति बनती है, तो यह अमेरिका और अमेरिकी डॉलर के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका साबित हो सकता है।
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नई मुद्रा का प्रभाव
अगर ब्रिक्स देशों द्वारा एक नई वैश्विक आरक्षित मुद्रा की स्थापना होती है, तो इसका अमेरिकी डॉलर और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे अमेरिका की वित्तीय शक्ति कमजोर हो सकती है और वैश्विक निवेशकों के लिए नए अवसर खुल सकते हैं। हालांकि, यह देखना बाकी है कि ब्रिक्स मुद्रा कब तक जारी होगी, लेकिन फिलहाल इस पर दुनिया की नज़रें टिकी हुई हैं।
नई मुद्रा के लाभ
- अमेरिकी प्रभुत्व से मुक्ति: ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर और यूरो पर निर्भरता कम कर सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्वायत्तता बढ़ेगी।
- आर्थिक स्थिरता: अपनी नई मुद्रा से, ब्रिक्स देश वैश्विक वित्तीय अस्थिरताओं का सामना बेहतर तरीके से कर सकेंगे।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सरलता: ब्रिक्स मुद्रा से आपसी व्यापार में डॉलर का उपयोग नहीं करना पड़ेगा, जिससे लेनदेन प्रक्रिया आसान और सस्ती हो सकती है।
क्या नई ब्रिक्स मुद्रा जल्द आ रही है?
इसका जवाब अभी निश्चित रूप से नहीं दिया जा सकता। हालांकि, 2022 के 14वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि ब्रिक्स देश एक नई वैश्विक आरक्षित मुद्रा जारी करने पर काम कर रहे हैं। 2023 में ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा ने भी इस विचार का समर्थन करते हुए कहा था कि “ब्रिक्स के पास अपनी खुद की एक मुद्रा होनी चाहिए। किसने तय किया कि डॉलर हमेशा से अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मुद्रा होगी?”
क्या होगी नई मुद्रा की चुनौतियाँ?
- सदस्यों की सहमति: ब्रिक्स देशों के बीच विभिन्न आर्थिक नीतियों और प्राथमिकताओं के कारण नई मुद्रा पर सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- वैश्विक स्वीकृति: एक नई मुद्रा को वैश्विक व्यापार प्रणाली में स्थापित करना और उसे व्यापक स्वीकृति दिलाना कठिन हो सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव: अमेरिका और यूरोप इस मुद्रा को अपनी वित्तीय ताकत के लिए खतरा मान सकते हैं और इसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।
निष्कर्ष
ब्रिक्स देशों द्वारा नई मुद्रा की संभावना एक बड़ा कदम हो सकता है जो वैश्विक वित्तीय परिदृश्य को बदल सकता है। इससे न केवल अमेरिकी डॉलर की प्रभुत्वता को चुनौती मिलेगी, बल्कि इन देशों के लिए अपने आर्थिक हितों की रक्षा करना भी आसान होगा। अगर यह योजना सफल होती है, तो ब्रिक्स राष्ट्र विश्व व्यापार में एक नई दिशा स्थापित कर सकते हैं।
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