अदालत का लाइव स्ट्रीमिंग बैन: क्या न्यायपालिका की गरिमा पर खतरा है?

अदालत का लाइव स्ट्रीमिंग बैन: क्या न्यायपालिका की गरिमा पर खतरा है?

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए हाईकोर्ट की कार्यवाही के वीडियो के उपयोग और अपलोड पर रोक लगा दी है। यह निर्णय अधिवक्ता संघ, बेंगलुरु द्वारा दायर याचिका पर आधारित है, जिसमें सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं द्वारा न्यायालय की लाइव स्ट्रीमिंग के वीडियो के उपयोग के खिलाफ आवाज उठाई गई थी।

लाइव स्ट्रीमिंग पर रोक

बेंगलुरु के उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने यूट्यूब चैनल पर लाइव स्ट्रीम किए गए अदालती कार्यवाही के वीडियो को सार्वजनिक रूप से उपयोग करने या अपलोड करने पर रोक लगा दी। न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर ने फेसबुक, एक्स और यूट्यूब जैसी सोशल मीडिया साइटों को आदेश दिया कि वे व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं द्वारा इन वीडियो को अपलोड करने से रोकें।

न्यायालय के निर्णय में क्या है? 

न्यायालय के अंतरिम आदेश में स्पष्ट कहा गया, “अगली तिथि तक प्रतिवादियों को अपने चैनलों पर वीडियो प्रदर्शित करने से रोका जाता है। यदि कोई वीडियो पहले से अपलोड किया गया है, तो उसे हटाया जाना चाहिए।” न्यायालय ने यह निर्देश अधिवक्ता संघ की याचिका पर जारी किया, जिसमें अदालती कार्यवाही के वीडियो के दुरुपयोग की शिकायत की गई थी।

वीडियो के दुरुपयोग का समाधान

हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि लाइव स्ट्रीमिंग को रोकना दुरुपयोग का एक स्थायी समाधान नहीं है। न्यायमूर्ति चंदनगौदर ने कहा, “आपको मोटी चमड़ी वाला होना चाहिए। न्यायाधीशों को भी इसके लिए तैयार रहना चाहिए।” उनका मानना है कि यदि कोई दुरुपयोग होता है, तो यह न्यायाधीश के संज्ञान में लाने की प्रक्रिया से निपटा जा सकता है।

अदालत का लाइव स्ट्रीमिंग बैन: क्या न्यायपालिका की गरिमा पर खतरा है?

विवादास्पद टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया

यह याचिका न्यायमूर्ति श्रीशानंद की विवादास्पद टिप्पणियों के बाद दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने पश्चिमी बेंगलुरु के एक मुस्लिम-बहुल क्षेत्र को ‘पाकिस्तान’ कहकर संबोधित किया था। इसके अतिरिक्त, एक अन्य वीडियो में उन्होंने एक महिला वकील को संबोधित करते हुए असंवेदनशील टिप्पणी की थी, जिससे व्यापक आलोचना हुई थी।

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एसोसिएशन की मांगें

एसोसिएशन ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अदालती कार्यवाही के वीडियो को संपादित या अवैध रूप से उपयोग करने से रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की थी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से भी अनुरोध किया कि वे इस प्रकार के वीडियो को हटा दें।

सुप्रीम कोर्ट की भी प्रतिक्रिया

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति श्रीशानंद की विवादास्पद टिप्पणियों पर ध्यान दिया है और कर्नाटक उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से इस पर रिपोर्ट मांगी है। न्यायमूर्ति श्रीशानंद ने अपनी टिप्पणियों के लिए खेद भी व्यक्त किया है।

निष्कर्ष

कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय अदालती कार्यवाही के वीडियो के उपयोग के संबंध में महत्वपूर्ण है। यह न केवल न्यायालय की गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि न्यायाधीशों और वकीलों के मनोबल को भी प्रभावित करता है। न्यायालय ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को बनाए रखना सभी के लिए आवश्यक है।

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Renu

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